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Showing posts from March, 2017

मेरी कहानी बिखर गयी

खोले डाइयरी के कुछ पुराने पन्ने अभी और मेरी कहानी बिखर गयी कुछ सपने गिरे कवर के छेद से जैसे रिहा हुए हों क़ैद से मिली लाश कुछ वादों की वहाँ ना जाने कब किए थे खुदसे और कहाँ कुछ पन्नो बाद वो बे-अदब ‘मैं’ भी निकला ना डर था जिससे और ना कोई परवाह बे-अदब ‘मैं’ मुझसे पूछता है ये यहाँ एक अजीब सा शोर क्यूँ है तेरी सोच में आगे निकालने की होड़ क्यूँ है ये क्या तेरी आम सी ज़िंदगी है ये कौन है तू ये क्या बन गया है तू समझ ए बे-अदब नासमझ है इसीलिए तो हराम है तू दुनिए के कितने कायदों से अंजान है तू कुछ सलीखा सीख ले जीने का अब तो नुस्खे ले कामयाबी के अब तो किन कायदों की बात करता है तू किन वादों की बात करता है तू देख खुद को आईनो मे कभी क्या था और क्या है अब तू सुन ओ क़ायदे पढ़ने वाले सुन ओ सलीखे सिखाने वाले तू कोई मसखरा तो नहीँ क्योंकि तू ‘मैं’ तो नहीं हो सकता कहाँ गयी है मेरी वो बेपरवाही कहाँ है मेरा वो… 'ठा से' चुप करवाया फिर उसे कवर, पन्नो और ड्रॉयर में दबाया फिर उसे बंद किए डाइयरी के कुछ पुराने पन्ने अभी और मेरी कहानी दफ़्न हुई

Thoda Hindu Main

मंदिर भी मैं, मस्जिद भी मैं थोड़ा हिंदू मैं और तोड़ा मुस्लिम भी मैं हूँ शिया मैं, सुन्नी भी हूँ हूँ ब्राहमीन मैं, शुद्रा भी हूँ. कुंभ का नगा भी मैं और हज का हाजी भी मैं क़व्वाल मैं अली का, और फिर नंद का लाल भी तो हूँ. मथुरा के लाल मे मलांग हूँ मैं खोज लेना जब खवजा के शहेर में हो. क्या डालेगा मुझे एक डब्बे में तू, क्या पहचानेगा मुझे एक ठप्पे में तू नहीं मिलेगी मेरी पहचान एक ज़ात मे यू मैं तो दिन हूँ और फिर रात भी तो हूँ.